Monday, March 9, 2009

आया फागुन 09


रंगों के ख़त बटता, आया फागुन द्वार
प्रेम-रंग का ख़त दिया, उसने अबकी बार

झांके घुघंट ओट से, हौले - से कचनार
भोरे करते प्यार से चुबन की बौझार

चुनर ओड़कर जयपुरी, नाचे सरसों आज
देख अदाए मदभरी,मौसम करता नाज

फागुन केसर ताल मे, डुबो गया ये देह
कानो मे रस घोलते, फाल्गुन के अब गीत

रंगों के इस त्यौहार मे जब देखा नीला रंग
याद उसकी गयी जो मेरा था सबसे करीब

सत-सत् नमन उनको मेरा ,
होठ चूमकर प्यार से, निभा गए जो प्रीत |


मेरा जीवन का अध्यापक *

Thursday, February 26, 2009

दिल टूटता क्यों नहीं


2005 की कुछ बची खुची शामें थीं वे
जिनमें हल्की सर्दी और तीखी धूप
सीने और सिर पर पडती थी
इस देश की गैर सांप्रदायिक सरकार का शासनकाल था वह....

उन्हीं में से एक शाम
सर्दी और धूप से ज्यादा मार
शब्दों की पडी थी उसके सीने पर
यह वही वक्त था जब मेरठ के एक पार्क में
प्रेम पर लाठियां चलीं थीं
और झज्जर के एक प्रेमी जोडे ने,

मरना बेहतर समझा थाअलग-अलग जीने से
और दूर कही एक
प्रेमी ने अपनी कलाई चाक कर दी थी
जिसका कारण न तो दर्द की इंतहा देखना था
न ही खून के बुलबुलों का संगीत सुनना

उस शाम उसे अफसोस हुआ कि वह इमरान क्यों है!
कोई संदीप या विकास या राजू क्यों नहीं
तब शायद आसानी होती उसे
प्रेम का युगल गीत गाने में

उसे पता नहीं था कि राजू शर्मा बाटला हाउस मे अकेला है

इन सभी घटनाओं के केंद्र से परे
राजू खाली सडक पर गुनगुना रहा था
"तुम सितम और करो टूटा नहीं दिल ये अभी".......

Thursday, January 22, 2009

क्या तुमने सुना हैं..!!!


सुना है वक़्त के पंख हुआ करते हैं….
कुछ लम्हों में हमने इसे ठहरे हुए देखा है.
किसी की ज़ुल्फ़ो में अटके हुए देखा है
झील सी आँखों में भटकते हुए देखा है…..

बहुत तेज़ी से निकल गया जब भी रोकना चाहा इसको,
सारी यादें साथ ले गया समेटना चाहा जिनको.
पर वो कुछ लम्हें आज भी वहीं ठहरें हैं,
आधी रातों को हमने इन्हे महकते हुए देखा है……

सुना है वक़्त के पंख हुआ करते हैं….
कुछ लम्हों में हमने इसे ठहरे हुए देखा है.
किसी की ज़ुल्फ़ो में अटके हुए देखा है
झील सी आँखों में भटकते हुए देखा है…..

वो फसाना झूठ नहीं हो सकता जो ख़ुद तूने कहा था,
वो सब ख्वाब नहीं हो सकता जो देखा इन आँखों नें..
तेरी वफ़ा पर कैसे सवाल करूँ मैं,
पर बदलते वक़्त के साथ तुझे मैने बदलते हुए देखा है

सुना है वक़्त के पंख हुआ करते हैं….
कुछ लम्हों में हमने इसे ठहरे हुए देखा है.
किसी की ज़ुल्फ़ो में अटके हुए देखा है
झील सी आँखों में भटकते हुए देखा है…..

हाँ मैंने वक्त को बदलते हुए देखा हैं और तुमने ......?

Tuesday, January 13, 2009

घूघुतिया त्यार

मकर संक्रान्ति का त्यौहार वैसे तो पूरे भारत वर्ष में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है और यही त्यौहार हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम और तरीके से मनाया जाता है। इस त्यौहार को हमारे उत्तराखण्ड में "उत्तरायणी" के नाम से मनाया जाता है तथा गढ़वाल में इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश की तरह "खिचड़ी संक्रान्ति" के नाम से मनाया जाता है। कुमाऊं में यह त्यौहार स्थानीय भाषा में घुघुतिया के नाम से जाना जाता है यह कूमाऊं सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है और मैं समझता हूं कि यह एक स्थानीय पर्व होने के साथ साथ हमारा स्थानीय लोक उत्सव भी है। क्योंकि इस दिन एक विशेष प्रकार क व्यंजन घुघुत बनाया जाता है जिस कारण कूमाऊं में मकर संक्रान्ति को ऊत्तरायणी के साथ साथ घुघुतिया त्यार के नाम से ज्यादा जाना जाता है।

घुघुते बनाने की भी अपनी अलग तरह की परंपरा है, यह एक ऐसा व्यंजन है जो केवल इस अवसर पर ही बनाया जाता है। वैसे बनाने में यह कोई विशिष्ट रैसीपी नही है। सबसे पहले पानी गरम करके उसमें गुड़ डालकर चाश्नी बना ली जाती है, फ़िर आटा छानकर इसे आटे में मिलाकर गूंथ लिया जाता है। जब आटा रोटी बनाने की तरह तैयार हो जाता है तो आटे की करीब ६" लम्बी और कनिष्का की मोटाई की बेलनाकार आकृतियों को हिन्दी के ४ की तरह मोड़्कर नीचे से बंद कर दिया जाता है। इन ४ की तरह दिखने वाली आकृतियों को स्थानीय भाषा में घुघुते कहते हैं। घुघुतों के साथ साथ इसी आटे से अन्य तरह की आकृतियां भी बनायी जाती हैं, जैसे अनार का फ़ूल, डमरू, सुपारी, टोकरी, तलवार आदि पर सामुहिक रूप से इनको घुघूत के नाम से ही जाना जाता है। घुघुते बनाने का क्रम दोपहर के बाद करीब २:०० - ३:०० बजे से शुरु हो जाता है जिसमें परिवार का हर सदस्य योगदान करता है।

आटे की आकृतियां बन जाने के बाद इनको सुखाने के लिए फ़ैलाकर रख दिया जाता है। रात तक जब घुघुते सूख कर थोड़ा ठोस हो जाते है तो उनको घी या वनस्पति तेल में में पूरियों की तरह तला जाता है। वैसे इस समय तक बच्चे सो जाते है पर अगर बच्चों की उत्सुक्ता अधिक हुयी तो किसी को भी तलते समय बात करने के मनाही रह्ती है। हमें तो बचपन में यह कह कर शान्त रह्ने को कहा जाता था कि अगर शोर करोगे तो घुघुते उड़ जायेंगे। इसका मुख्य कारण यह है कि इससे रसोइये का ध्यान भंग ना हो, दुसरा कारण यह भी रहता है कि थूक के छीटे अगर गर्म तेल में पड़ेंगे तो तेल के छींटे भी काफ़ी नुकसान कर सकते हैं। पर एक विशेष बात यह रहती है कि घुघुते कौओं को खिलाने से पहले कोई नही खा सकता।
घुघुतों को तलने के बाद इनकी माला बनायी जाती है जिसे और सुन्दर बनाने के माला में मूंगफ़ली, स्थानीय फ़ल जैसे मालटा/नारंगी, बादाम की गरी या अन्य मेवे भी पिरोये जाते हैं। घुघुतों की माला बनाने के बाद इनको अगले दिन कौओं खिलाने की तैयारी के साथ संभालकर रख दिया जाता है।

कूमाऊं के अल्मोड़ा, चम्पावत, नैनीताल तथा उधमसिंहनगर जनपदीय क्षेत्रों में मकर संक्रान्ति को (अर्थात माघ मास के १ गते को) घुघुते बनाये जाते हैं और अगली सुबह (२ गते माघ को) को कौवे को दिये जाते हैं (कौओं को पितरों का प्रतीक मानकर यह पितरों को अर्पण माना जाता है)। वहीं रामगंगा पार के पिथौरागढ़ और बागेश्वर अंचल में मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या (पौष मास के अंतिम दिन अर्थात मशान्ति) को ही घुघुते बनाये जाते हैं और मकर संक्रान्ति अर्थात माघ १ गते को कौवे को खिलाये जाते हैं।
वैसे तो पहाड़ो में कौए को प्रिय माना जाता है और तड़के उसका स्वर घर के आस पास सुनायी देना शुभ माना जाता है पर इस दिन कौओं की विशेष पूछ रहती है। छोटे-छोटे बच्चे भी तड़के उठ, स्नान करके तैयार हो जाते हैं और घुघुतों की माला पहन कर कौवे को आवाज लगाते हैं;
काले कौवा का-का, ये घुघुती खा जा
काले कौव्वा का-का, पूस की रोटी माघे खा
इसी प्रकार के कई नारे हैं जैसे
काले कौआ काले, घुघुति माला खा ले आदि
इसके बाद शुरू होता है रिश्तेदारों तथा मित्रगणों के घर-घर घुघूते बांटने का सिलसिला और यह कई दिनों तक चलता रहता है। जो सद्स्य घर से दूर रहते हैं उनके लिए घुघूते सम्भाल कर रख दिये जाते हैं, जिससे जब वह घर पर आयें तो उनको खाने के लिए दिये जा सकें। जो लोग अपने घर से दूर रहते हैं उनको भी घुघूते खाने का ईन्तजार रहता है। आजकल घुघूते प्रियजनों तक पार्सल और कोरियर के माध्यम से भी भेजे जाने लगे हैं। वैसे घुघूतिया के दिन घुघूते बनाने के बाद इनको आवश्यकतानुसार बसन्त पंचमी तक बनाया जा सकता है, पर इस दिन इनको हर घर में बनाया जाना आवश्यक होता है।

घुघुतिया त्यार से सम्बधित एक कथा प्रचलित है....
कहा जाता है कि कूमाऊं में एक राजा था जिसके मंत्री का नाम घुघुतिया था। घुघुतिया एक कुशल योद्धा होने के साथ साथ बड़ा ही महत्वाकांक्षी भी था। धीरे धीरे उसकी महत्वाकांक्षा इतनी बढ़ गयी कि वह खुद राजा बनने की सोचने लगा। एक बार जब वह अपने किसी साथी के साथ राजा को मारकर ख़ुद राजा बनने का षड्यन्त्र बना रहा था तो एक कौए ने उनकी बातें सुन ली। कौआ बड़ा ही चतुर पक्षी समझा जाता है, जिस कारण ही बाल कथाओं में प्यासे कौए की कहानी बड़ी प्रसिद्ध है।

कौव्वे को जैसे ही राजा की हत्या की साजिश की जानकारी हुयी, उसने तुरन्त आकर राजा को इस बारे में सूचित कर दिया। राजा को पहले तो विश्वास नही हुआ परन्तु उसने घुगुतिया को गिरफ़तार कर कारागार में डाल दिया। जिसके बाद जांच में बात सही पाये जाने पर राजा द्वारा मंत्री घुघुतिया को मृत्युदंड मिला। कौए की इस चतुराई और राजा के प्रति राजभक्ति से राजा बड़ा प्रभावित हुआ और उसने राज्य भर में घोषणा करवा दी कि मकर संक्रान्ति के दिन सभी राज्यवासी कौव्वो को पकवान बना कर खिलाएंगे। तभी से कौओं के प्रति सौहार्द प्रकट करने वाले इस अनोखे त्यौहार को मनाने की प्रथा की शुरूवात मानी जाती है।

विश्व में पशु पक्षियों से सम्बंधित कई त्योहार मनाये जाते हैं पर कौओं को विशेष व्यंजन खिलाने का यह अनोखा त्यौहार उत्तराखण्ड के कुमाऊं अंचल के अलावा शायद कहीं नही मनाया जाता है। वैसे कौए की चतुराई के बारे में कहावत है कि मनुष्यों में नौआ और जानवरों में कौआ अर्थात मानवों में नाई और जानवरों में कौआ सबसे बुद्धिमान होते हैं। कौए की चतुराई के बारे में कई वैज्ञानिक शोध भी हो चुके जिनसे भी इस बात की पुष्टि हुयी है कि कौए का मष्तिष्क अन्य पशु-पक्षियों से अधिक विकसित होता है।
काले कवा काले, घुघुती मावा खा ले - घुघुती त्यौहार मुबारक !

राजेश जोशी - कुमाउनी रस्मो-रिवाज

Thursday, November 13, 2008

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा.
जीवन का एक ऐसा साथी है,
जो दूर हो के पास नहीं.
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.
हवा का एक सुहाना झोंका है,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा.
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा.
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र,
जो समंदर है, पर दिल को प्यास नहीं.
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है.
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है.
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं.
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं..........

Saturday, November 8, 2008

जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई


हे उषा देवीके चंचल कलीके,
युग्म के ललाट की पहली रेखा
दे रहा हूं बधाई सानन्द,
जन्मदिन की अभिलेखा

'प्रतीक्षा' केवल प्रतीक्षा का संगम,
परिवर्तित हुआ इतना
नववर्षकी रजनीमें,नव तुषारका
सघन मिलन होता जितना

जीवन तेरा स्वर्णमयी हो,
बिखरा हो वसंत मधुमयी
भाग्य सर्वदा मीत तुम्हारा,
लाये उमंग हर पल नयी

फ़ले फ़ुले जीवन की बगिया,
नित फ़ुलोंका साज लिये
सजे गीत जीवन में तेरे,
नित नया झंकार लिये

मै हूं आगन्तुक व्यक्ति,
करता अभिलाषा सविशेष
अर्पित शब्दोंकी पंखुरिया,
" मुन्नी" को मेरा मधुमय संदेश...


जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई आप जियो हजारो साल, साल के दिन हो पचास हजार

If you ask me,4 how long i will b ur friend? My answer will b "I don't know".coz I really don't know which is longer,"Forever or Always".Nw hapy thur26708 (14.21)
इतना अकेला हो चुका हूँ ...कि बेजान सी चीजों से भी बातें कर लेता हूँ ....अबकी बार आओं तो मेरे दोस्त की खबर लाना..

Saturday, November 1, 2008

रहस्य

जीवन क्या है केवल एक अहसास
अपने अस्तित्व के
होने का भ्रम
आजीवन हम
इसको तलाश करने का
प्रयास करते रहते है
और अंततः
असफलता ही
हाथ लगाती है, हमारे
और जब हम
अस्तित्वविहीन
हो जाते हैं
तो फिर से
एस सोच की पुनराव्रत्ति
प्रारंभ होती हैं
हमारी आने वाली
पीढी के द्वारा...

निका*
Making a million friends is not a miracle, the miracle is to find a friend who will stand by U when a million are against U !!!