रंगों के ख़त बटता, आया फागुन द्वार
प्रेम-रंग का ख़त दिया, उसने अबकी बार
झांके घुघंट ओट से, हौले - से कचनार
भोरे करते प्यार से चुबन की बौझार
चुनर ओड़कर जयपुरी, नाचे सरसों आज
देख अदाए मदभरी,मौसम करता नाज
फागुन केसर ताल मे, डुबो गया ये देह
कानो मे रस घोलते, फाल्गुन के अब गीत
रंगों के इस त्यौहार मे जब देखा नीला रंग
याद उसकी आ गयी जो मेरा था सबसे करीब
सत-सत् नमन उनको मेरा ,
होठ चूमकर प्यार से, निभा गए जो प्रीत |
प्रेम-रंग का ख़त दिया, उसने अबकी बार
झांके घुघंट ओट से, हौले - से कचनार
भोरे करते प्यार से चुबन की बौझार
चुनर ओड़कर जयपुरी, नाचे सरसों आज
देख अदाए मदभरी,मौसम करता नाज
फागुन केसर ताल मे, डुबो गया ये देह
कानो मे रस घोलते, फाल्गुन के अब गीत
रंगों के इस त्यौहार मे जब देखा नीला रंग
याद उसकी आ गयी जो मेरा था सबसे करीब
सत-सत् नमन उनको मेरा ,
होठ चूमकर प्यार से, निभा गए जो प्रीत |
मेरा जीवन का अध्यापक *