Thursday, November 13, 2008

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा.
जीवन का एक ऐसा साथी है,
जो दूर हो के पास नहीं.
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.
हवा का एक सुहाना झोंका है,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा.
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा.
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र,
जो समंदर है, पर दिल को प्यास नहीं.
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है.
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है.
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं.
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं..........

Saturday, November 8, 2008

जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई


हे उषा देवीके चंचल कलीके,
युग्म के ललाट की पहली रेखा
दे रहा हूं बधाई सानन्द,
जन्मदिन की अभिलेखा

'प्रतीक्षा' केवल प्रतीक्षा का संगम,
परिवर्तित हुआ इतना
नववर्षकी रजनीमें,नव तुषारका
सघन मिलन होता जितना

जीवन तेरा स्वर्णमयी हो,
बिखरा हो वसंत मधुमयी
भाग्य सर्वदा मीत तुम्हारा,
लाये उमंग हर पल नयी

फ़ले फ़ुले जीवन की बगिया,
नित फ़ुलोंका साज लिये
सजे गीत जीवन में तेरे,
नित नया झंकार लिये

मै हूं आगन्तुक व्यक्ति,
करता अभिलाषा सविशेष
अर्पित शब्दोंकी पंखुरिया,
" मुन्नी" को मेरा मधुमय संदेश...


जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई आप जियो हजारो साल, साल के दिन हो पचास हजार

If you ask me,4 how long i will b ur friend? My answer will b "I don't know".coz I really don't know which is longer,"Forever or Always".Nw hapy thur26708 (14.21)
इतना अकेला हो चुका हूँ ...कि बेजान सी चीजों से भी बातें कर लेता हूँ ....अबकी बार आओं तो मेरे दोस्त की खबर लाना..

Saturday, November 1, 2008

रहस्य

जीवन क्या है केवल एक अहसास
अपने अस्तित्व के
होने का भ्रम
आजीवन हम
इसको तलाश करने का
प्रयास करते रहते है
और अंततः
असफलता ही
हाथ लगाती है, हमारे
और जब हम
अस्तित्वविहीन
हो जाते हैं
तो फिर से
एस सोच की पुनराव्रत्ति
प्रारंभ होती हैं
हमारी आने वाली
पीढी के द्वारा...

निका*
Making a million friends is not a miracle, the miracle is to find a friend who will stand by U when a million are against U !!!

Wednesday, October 22, 2008

उनको ये शिकायत है...

उनको ये शिकायत है.. मैं बेवफ़ाई पे नही लिखता,
और मैं सोचता हूँ कि मैं उनकी रुसवाई पे नही लिखता.'

'ख़ुद अपने से ज़्यादा बुरा, ज़माने में कौन है ??
मैं इसलिए औरों की.. बुराई पे नही लिखता.'

'कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है ,
ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखता.'

'दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्ज़ाम लगाती है,
वरना क्या बात?? कि मैं कुछ अपनी.. सफ़ाई पे नही लिखता.'

'शान-ए-अमीरी पे करू कुछ अर्ज़.. मगर एक रुकावट है,
मेरे उसूल, मैं गुनाहों की.. कमाई पे नही लिखता.'
'उसकी ताक़त का नशा.. "मंत्र और कलमे" में बराबर है !!
मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे नही लिखता.'

'समंदर को परखने का मेरा, नज़रिया ही अलग है यारों!!
मिज़ाज़ों पे लिखता हूँ मैं उसकी.. गहराई पे नही लिखता.'

'पराए दर्द को , मैं ग़ज़लों में महसूस करता हूँ ,
ये सच है मैं शज़र से फल की, जुदाई पे नही लिखता.'

'तजुर्बा तेरी मोहब्बत का'.. ना लिखने की वजह बस ये!!
क़ि 'शायर' इश्क़ में ख़ुद अपनी, तबाही पे नही लिखता।

रचियता - अज्ञात
प्रस्तुति - निका*

Making a million friends is not a miracle, the miracle is to find a friend who will stand by U when a million are against U !!!

दोस्त कहना ही दोस्ती नहीं होती

मत इंतज़ार कराओ हमे इतना
कि वक़्त के फैसले पर अफ़सोस हो जाये
क्या पता कल तुम लौटकर आओ
और हम खामोश हो जाएँ

दूरियों से फर्क पड़ता नहीं
बात तो दिलों कि नज़दीकियों से होती है
दोस्ती तो कुछ आप जैसो से है
वरना मुलाकात तो जाने कितनों से होती है

दिल से खेलना हमे आता नहीं
इसलिये इश्क की बाजी हम हार गए
शायद मेरी जिन्दगी से बहुत प्यार था उन्हें
इसलिये मुझे जिंदा ही मार गए

मना लूँगा आपको रुठकर तो देखो,
जोड़ लूँगा आपको टूटकर तो देखो।
नादाँ हूँ पर इतना भी नहीं ,
थाम लूँगा आपको छूट कर तो देखो।

लोग मोहब्बत को खुदा का नाम देते है,
कोई करता है तो इल्जाम देते है।
कहते है पत्थर दिल रोया नही करते,
और पत्थर के रोने को झरने का नाम देते है।

भीगी आँखों से मुस्कराने में मज़ा और है,
हसते हँसते पलके भीगने में मज़ा और है,
बात कहके तो कोई भी समझलेता है,
पर खामोशी कोई समझे तो मज़ा और है...!

मुस्कराना ही ख़ुशी नहीं होती,
उम्र बिताना ही ज़िन्दगी नहीं होती,
दोस्त को रोज याद करना पड़ता है,
क्योकि दोस्त कहना ही दोस्ती नहीं होती। ..

रचियता - अज्ञात
प्रस्तुति - निका*

Making a million friends is not a miracle, the miracle is to find a friend who will stand by U when a million are against U !!!

Monday, October 13, 2008

जिन्दगी का रूप


जिन्दगी का अजीब सा रूप देखा
लोगो को मुस्कुराते हुए अपने गमो को छुपाते देखा
और यहाँ अपनों को जख्म लगाते देखा
रौशनी में भी जुल्म को सिर उठाते देखा
धर्म के सौदागरों को धर्म भूलते हुए देखा

कहते हैं जिसे इंसानियत
उसे इन्सान का दामन छोड़ते हुए देखा
और कहते हैं जिसे ऊपर वाला
आज उसे भी अपनी बनाये इन्सान पर.....
शरमाते हुए देखा.....
निका*

Making a million friends is not a miracle, the miracle is to find a friend who will stand by U when a million are against U !!!

मैं जिन्दा हूँ

तू जिन्दा हैं तो जिन्दगी की
जीत पर यकीं कर
अगर कहीं हैं स्वर्ग तो
उतर ला जमीन पर
ये गम के और चार दिन
ये दिन भी गुजर जायेंगे
जब गुजर गए जिन्दगी के हजार दिन



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Tuesday, October 7, 2008

मेरा जिन्दगी का सफ़र

मैं दो कदम चलती और एक पल को रुकती मगर,इस एक पल में जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे चली जाती,मैं फिर दो कदम चलती और एक पल को रुकती मगर,जिन्दगी मुझसे फिर चार कदम आगे चली जाती,जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराती और जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती,ये सिलसिला यूहीं चलता रहा,फिर एक दिन मुझको हंसती देख एक सितारे ने पुछा "तुम हारकर भी मुस्कुराते हो,क्या तुम्हे दुःख नहीं होता हार का?"तब मैंने कहा,मुझे पता है एक ऐसी सरहद आएगी जहाँ से जिन्दगी चार तो क्या एक कदम भी आगे नहीं जा पायेगी और तब जिन्दगी मेरा इंतज़ार करेगी और मैं तब भी अपनी रफ्तार से यूहीं चलती रुकती वहां पहुंचूंगी .........एक पल रुक कर जिन्दगी की तरफ देख कर मुस्कुरूंगी,बीते सफ़र को एक नज़र देख फिर चलूंगी,ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउंगी,मैं अपनी हार पर मुस्कुरायी थी और अपनी जीत पर भी मुस्कुरुंगी और जिन्दगी अपनी जीत पर भी न मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर भी न मुस्कुरा पायेगी,बस तभी मैं जिन्दगी को जीना सीख जाउंगी ....... निका*



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Friday, October 3, 2008

प्रश्न

अनेक प्रश्न ऐसे है जो कभी दोहराए नही जाते
बहुत उत्तर भी ऐसे हैं जो कभी बतलाए नही जाते

इसी कारण अभावो का सदा स्वागत किया मैंने
कि घर आ मेहमान कभी लौटाए नही जाते

हुआ क्या आँख से आँसू अगर बाहर नही निकले
बहुत से गी भी ऐसे है जो कभी गाए नही जाते

बनाना चाहती हूँ स्वर्ग तक सोपान सपनों का
मगर चादर से ज्यादा पाँव फैलाए नही जाते..........

Making a million friends is not a miracle, the miracle is to find a friend who will stand by U when a million are against U !!!

Saturday, September 20, 2008

जय पराजय

समुंद्र तट पर
क्या तुमने देखा हैं
लहरों का चट्टानों से टकराना?
कभी सोचा हैं.....
किसमे हैं शक्ति ज्यादा,
लहरों में टकराने की...
या
चट्टानों में चोट खाने की?
हर लहर लेकर आती हैं उत्साह
और भेदना चाती हैं उस पत्थर को
जो बना रहता हैं ज्यों का त्यों
जेसे अपनी नियति को दे दी हो
एक मौन स्वीकृति
मेरे अन्दर भी
एक एसा ही द्धुंद
हर क्षण
आशा की लहरों का
निराशा के पत्थरों से
एक अनवरत संघर्ष
नियति को बदलना चाहती हूँ
में पत्थरों की पराजय चाहती हूँ* ........
निका*

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Thursday, August 28, 2008

मेरी ख्वाहिश


मुझे वहाँ जाना हैं,
जहाँ मेरा साया भी
मेरे साथ न हो,
मुझे वहाँ जाना हैं,
जहाँ अतीत का कोई
नमो-निशान न हो,
मुझे वहाँ जाना हैं,
जहाँ चाहत, नफ़रत, बेरुखी
और प्यार भी न हो,
सभी को देखा,
कभी न कभी तो,
आपको भी महसूस हुआ होगा,
की वह वहाँ पर हो,
जहाँ कोई न हो ............

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Thursday, August 7, 2008

अब जिंदगी सुलझ चुकी है


हाँ,अब मेरे पास कोई सवाल नहीं है।
मेरे सारे सवालो के जवाब,
मुझे मिल चुके है।
अब जिंदगी सुलझ चुकी है,
सरल हो चुकी है।
मै अपनी तलाश बंद कर चुका हूँ।
जीवन के प्रति प्रश्नो की धार..
बहूत ऊँचाई से गिरकर,
समाधान का जलप्रपात बन चुकी है।
वरना लंबी हो चली थी प्रश्नावली,
जैसे धडकनो/साँसो की यात्रा,
या फिर शब्दो के आभाव से,
खिंचती चली जा रही कविता की तरह,
किंतु अब पूर्ण विराम है,
केवल पूर्ण विराम।
मिट चुके है, प्रश्नचिन्ह,
धूमिल,बिलकुल खत्म से,
कि जिदंगी क्या है?
समाधान/जवाब/जिदंगी..
है,मेरी कविता की डायरी।
मुझे याद हैकि मैने,
उस दिन से जीना शुरु किया था,
जब अकेलेपन से भडभडाकर,
पहली कविता को लिखा था।
अकेलापन दूसरी,तीसरी..
और पाँचवी कविता के साथ खत्म हुआ।
खामोशी को ,
आलोचनाओ/प्रंशसाओ ने घेर लिया।
फिर मै स्वयं से ही कहने लगा अपने अहसास,
छटवी मे कष्ट, तो आठवीं में खुशी का इजहार।
नौवी कविता से वो मेरे जीवन में आई,
दसवी तक मेरे सम्पूर्ण मे समाई,लेकिन
ग्यारहवी से लगा जैसे कि लौट जाऊ?
पर जिंदगी से कोई कैसे लौटे?
वो मेरी थी,
लगता था वो मेरी थी।
तेरह,पन्द्रह से लेकर अतिंम पृष्ठ तक।
चलता रहा ये सब बीस तक,
जोडता रहा मै सपने उन्तीस तक।
लगता है,अब ये गर्माहट खत्म हो जायेगी,
अहसासो पर बर्फ जम जायेगी।
तीस में,वो मुझे छोडकर चली जायेगी।
उसके बाद...
ढेर से खाली पृष्ठ...
अब मै फिर से उलझ चुका हूँ,
सवालो को पुनः फैला चुका हूँ,
समाधान उड चुके है,
मै उन्हे उडते हुए देख रहा हूँ,
sourc:yaksh parshan

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Friday, July 25, 2008

शूल से शब्द

चुभते शूल से शब्द
किसी फूल से नाज़ुक एहसास को
मुरझा देने पर मज़बूर कर देते हैं
और बाग़ में बचतीं हैं कुछ सूखी सी पत्तियां
और माली सोचता हुआ
कि आखिर साथ साथ चलते हुए
क्यों घायल कर जाते हैं
दो साथी एक दूसरे को,

शायद अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
दूसरे को घायल करना ज़रूरी था........

Making a million friends is not a miracle, the miracle is to find a friend who will stand by U when a million are against U !!!