जिनमें हल्की सर्दी और तीखी धूप
सीने और सिर पर पडती थी
इस देश की गैर सांप्रदायिक सरकार का शासनकाल था वह....
उन्हीं में से एक शाम
सर्दी और धूप से ज्यादा मार
शब्दों की पडी थी उसके सीने पर
यह वही वक्त था जब मेरठ के एक पार्क में
प्रेम पर लाठियां चलीं थीं
और झज्जर के एक प्रेमी जोडे ने,
मरना बेहतर समझा थाअलग-अलग जीने से
और दूर कही एक प्रेमी ने अपनी कलाई चाक कर दी थी
जिसका कारण न तो दर्द की इंतहा देखना था
न ही खून के बुलबुलों का संगीत सुनना
उस शाम उसे अफसोस हुआ कि वह इमरान क्यों है!
कोई संदीप या विकास या राजू क्यों नहीं
तब शायद आसानी होती उसे
प्रेम का युगल गीत गाने में
उसे पता नहीं था कि राजू शर्मा बाटला हाउस मे अकेला है
राजू खाली सडक पर गुनगुना रहा था
"तुम सितम और करो टूटा नहीं दिल ये अभी".......
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