
हाँ,अब मेरे पास कोई सवाल नहीं है।
मेरे सारे सवालो के जवाब,
मुझे मिल चुके है।
अब जिंदगी सुलझ चुकी है,
सरल हो चुकी है।
मै अपनी तलाश बंद कर चुका हूँ।
जीवन के प्रति प्रश्नो की धार..
बहूत ऊँचाई से गिरकर,
समाधान का जलप्रपात बन चुकी है।
वरना लंबी हो चली थी प्रश्नावली,
जैसे धडकनो/साँसो की यात्रा,
या फिर शब्दो के आभाव से,
खिंचती चली जा रही कविता की तरह,
किंतु अब पूर्ण विराम है,
केवल पूर्ण विराम।
मिट चुके है, प्रश्नचिन्ह,
धूमिल,बिलकुल खत्म से,
कि जिदंगी क्या है?
समाधान/जवाब/जिदंगी..
है,मेरी कविता की डायरी।
मुझे याद हैकि मैने,
उस दिन से जीना शुरु किया था,
जब अकेलेपन से भडभडाकर,
पहली कविता को लिखा था।
अकेलापन दूसरी,तीसरी..
और पाँचवी कविता के साथ खत्म हुआ।
खामोशी को ,
आलोचनाओ/प्रंशसाओ ने घेर लिया।
फिर मै स्वयं से ही कहने लगा अपने अहसास,
छटवी मे कष्ट, तो आठवीं में खुशी का इजहार।
नौवी कविता से वो मेरे जीवन में आई,
दसवी तक मेरे सम्पूर्ण मे समाई,लेकिन
ग्यारहवी से लगा जैसे कि लौट जाऊ?
पर जिंदगी से कोई कैसे लौटे?
वो मेरी थी,
लगता था वो मेरी थी।
तेरह,पन्द्रह से लेकर अतिंम पृष्ठ तक।
चलता रहा ये सब बीस तक,
जोडता रहा मै सपने उन्तीस तक।
लगता है,अब ये गर्माहट खत्म हो जायेगी,
अहसासो पर बर्फ जम जायेगी।
तीस में,वो मुझे छोडकर चली जायेगी।
उसके बाद...
ढेर से खाली पृष्ठ...
अब मै फिर से उलझ चुका हूँ,
सवालो को पुनः फैला चुका हूँ,
समाधान उड चुके है,
मै उन्हे उडते हुए देख रहा हूँ,
sourc:
yaksh parshanMaking a million friends is not a miracle, the miracle is to find a friend who will stand by U when a million are against U !!!