Tuesday, October 7, 2008

मेरा जिन्दगी का सफ़र

मैं दो कदम चलती और एक पल को रुकती मगर,इस एक पल में जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे चली जाती,मैं फिर दो कदम चलती और एक पल को रुकती मगर,जिन्दगी मुझसे फिर चार कदम आगे चली जाती,जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराती और जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती,ये सिलसिला यूहीं चलता रहा,फिर एक दिन मुझको हंसती देख एक सितारे ने पुछा "तुम हारकर भी मुस्कुराते हो,क्या तुम्हे दुःख नहीं होता हार का?"तब मैंने कहा,मुझे पता है एक ऐसी सरहद आएगी जहाँ से जिन्दगी चार तो क्या एक कदम भी आगे नहीं जा पायेगी और तब जिन्दगी मेरा इंतज़ार करेगी और मैं तब भी अपनी रफ्तार से यूहीं चलती रुकती वहां पहुंचूंगी .........एक पल रुक कर जिन्दगी की तरफ देख कर मुस्कुरूंगी,बीते सफ़र को एक नज़र देख फिर चलूंगी,ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउंगी,मैं अपनी हार पर मुस्कुरायी थी और अपनी जीत पर भी मुस्कुरुंगी और जिन्दगी अपनी जीत पर भी न मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर भी न मुस्कुरा पायेगी,बस तभी मैं जिन्दगी को जीना सीख जाउंगी ....... निका*



Making a million friends is not a miracle, the miracle is to find a friend who will stand by U when a million are against U !!!

1 comment:

Unknown said...

निका जी बहुत अच्छा शब्दों को बांधकर क्या खूब जिन्दगी के सफ़र का वर्णन किया हैं बढ़ते रहिये अपने सफ़र पर ..देखा जाये तो हम सभी जिन्दगी को जीने की कला सीख रहे हैं ..
कितना दम हैं इन पंक्तियों में ...........
"मैं अपनी हार पर मुस्कुरायी थी और अपनी जीत पर भी मुस्कुरुंगी और जिन्दगी अपनी जीत पर भी न मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर भी न मुस्कुरा पायेगी,बस तभी मैं जिन्दगी को जीना सीख जाउंगी"

आमीन