क्या तुमने देखा हैं
लहरों का चट्टानों से टकराना?
कभी सोचा हैं.....
किसमे हैं शक्ति ज्यादा,
लहरों में टकराने की...
या

चट्टानों में चोट खाने की?
हर लहर लेकर आती हैं उत्साह
और भेदना चाहती हैं उस पत्थर को
जो बना रहता हैं ज्यों का त्यों
जेसे अपनी नियति को दे दी हो
एक मौन स्वीकृति
मेरे अन्दर भी
एक एसा ही द्धुंद
हर क्षण
आशा की लहरों का
निराशा के पत्थरों से
एक अनवरत संघर्ष
नियति को बदलना चाहती हूँ
में पत्थरों की पराजय चाहती हूँ* ........
निका*
Making a million friends is not a miracle, the miracle is to find a friend who will stand by U when a million are against U !!!
1 comment:
बहुत सुन्दर रचना है।
आशा की लहरों का
निराशा के पत्थरों से
एक अनवरत संघर्ष
नियति को बदलना चाहती हूँ
में पत्थरों की पराजय चाहती हूँ* ......
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